हर खनक दिल के हर कोने में,
एक पलभर का दस्तक दिया होता
अगर कमबख्त एक तिनके भर मौके ने,
तो सिमटी न होती ये ज़िन्दगी ,
इन माचिस की डिब्बियों के 6 * 6 केबिन में !!
जान शायद सपनों में ही कम रही होगी,
अल्फाज़ अगर खो भी जाते कहीं , फिर भी
इस बेकरारी की ग़ज़ल पेश हो जाती,मगर धुन शायद मेरी आवारगी की मंद रही होगी !!
झूलते शमियाने और टूटते पैमाने ही रह गए हैं
जिसे देख लगे ये भी कभी आशियाना रहा होगा
पड़ी जो परत वक़्त की इस्पे,
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